RBI ने को ऑपरेटिव सोसाइटी के आगे "बैंक"नाम ना लगाने के लिए बोला है।
आरबीआई ने एक्ट 1949,और धारा 7 के तहत बोला की जो सहकारी संस्थानों को लाइसेंस मिला है सिर्फ वही लोग नाम के आगे बैंक,बैंकिंग या बैंकर्स इस्तेमाल कर सकते है।
चलिए पता करते है कि धारा 7 किया है?
और आरबीआई ने चेतावनी दिया की भविष्य में इं समितियों में जमा राशि की बीमा कवरेज देने को भी बाध्य नहीं है।
अभी प्रश्न आता होगा कि अभी आरबीआई ऐसा कदम कीयुं उठा रहा है?पहले कहा था?
पड़ताल से मालूम चला कि पंजाब और महाराष्ट्र में बित्तियो घोटाले के बाद आरबीआई एक के बाद एक कदम उठा रहा है।
इसी के बाद सितंबर 2020 में संसद द्वारा अनुमोदित बैंकिंग विनियमन अधिनियम में परिवर्तन हुआ, सहकारी बैंकों को आरबीआई की प्रत्यक्ष निगरानी में लाया।
बैंकिंग विनियमन अधिनियम को कैसे संशोधित किया गया है?
सहकारी बैंक लंबे समय से राज्य रजिस्ट्रार ऑफ सोसाइटीज और आरबीआई द्वारा दोहरे विनियमन के अधीन हैं। नतीजतन, ये बैंक विफलताओं और धोखाधड़ी के बावजूद जांच से बच गए हैं।
सितंबर 2020 में संसद द्वारा अनुमोदित बैंकिंग विनियमन अधिनियम में परिवर्तन ने सहकारी बैंकों को आरबीआई की प्रत्यक्ष निगरानी में ला दिया।
लेकिन एनसीपी इस नए कानूनों का विरोध क्यों कर रही थी?
भारत के 1,500 से अधिक शहरी सहकारी बैंकों में से लगभग एक तिहाई महाराष्ट्र में हैं - राज्य में 497 परिचालन शहरी सहकारी बैंक और 31 जिला केंद्रीय सहकारी बैंक हैं, जिनकी कुल जमा राशि 2.93 लाख करोड़ रुपये है।
इन बैंकों में बड़ी संख्या में एनसीपी नेताओं का नियंत्रण है। नया कानून उन्हें आरबीआई के सीधे नियमन के तहत लाता है, जिससे उनकी जवाबदेही बढ़ेगी और उन्हें जांच के दायरे में लाया जाएगा कि वे अब तक बच गए हैं।
किस वजह से कानून में बदलाव की जरूरत पड़ी?
भारत में लगभग 1,540 शहरी सहकारी बैंक हैं, जिनका जमाकर्ता आधार 8.6 करोड़ है और जमा राशि कम से कम 5 लाख करोड़ रुपये है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले साल लोकसभा को बताया था कि कम से कम 277 शहरी सहकारी बैंकों की वित्तीय स्थिति कमजोर थी, और लगभग 105 सहकारी बैंक न्यूनतम नियामक पूंजी की आवश्यकता को पूरा करने में असमर्थ थे।
इसके अलावा, सीतारमण ने कहा, 47 बैंकों का निवल मूल्य नकारात्मक था, और 328 शहरी सहकारी बैंकों की सकल गैर-निष्पादित संपत्ति 15 प्रतिशत से अधिक थी।
आरबीआई की नवीनतम वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के अनुसार, शहरी सहकारी बैंकों का सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्ति अनुपात मार्च 2020 में 9.89 प्रतिशत से घटकर सितंबर 2020 में 10.36 प्रतिशत हो गया।
न केवल इन बैंकों के पास उच्च स्तर के बुरे ऋण हैं, उनके पास एक छोटा पूंजी आधार भी है - कुछ ऐसा जो इन बैंकों को आरबीआई की मंजूरी के साथ शेयर जारी करने की अनुमति देकर कानून में बदलाव को संबोधित करने की कोशिश की है।
इन बैंकों के साथ कर्मचारियों की नियुक्तियों में राजनीतिक हस्तक्षेप भी एक समस्या है, जिसने अक्षमताओं को और बढ़ा दिया है।
Conclusion:
आज में इसीलिए आपलोग को उपरोक्त सज्झा किया कि हम और आप भविष्य में आनेवाला दिक्कतें से बचना होगा और अपने को अपडेट रखनाहोगा ।और दोबारा पीएमसी बैंक के तरहा कोई प्रबल फेस नकारे।
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